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सोमवार, 25 अक्तूबर 2010

बुरा हाल!

बुरा हाल!

खदेरन एक दिन एकदम फटेहाल अवस्था में घर से बाहर खड़ा था। उसके चेहरे पर जगह-जगह लाल-काले निशान पड़े हुए थे। कई जगह तो सूजन भी आ चुकी थी। चेहरा उतरा हुआ था। सूरत रुआंसी थी।

फाटक बाबू की नज़र उसपर पड़ी। आश्चर्यचकित रह गए फाटक बाबू। उन्होंने खदेरन से पूछा,

“खदेरन भाई! अपने घर के बाहर क्यों खड़े हो? … और यह चोटें कैसे लगी?”

खदेरन बोला,

“हुआ यूं कि …….”

आगे कुछ खदेरन बोले उसके पहले ही फाटक बाबू ने उसकी बात काटते हुए कहना शुरु कर दिया,

“कितनी बार तुझसे कहा कि लोगों से झगड़ा मत किया करो। मगर मेरी बातों का तुम पर कोई असर थोड़े ही होता है। कमबख़्तों ने मार-मार कर तेरा कितना बुरा हाल कर दिया है?! बुरा हो उसका … कीड़े फड़े उसके। ……”

अब बारी खदेरन की थी। फाटक बाबू को आगे बोलने से रोकते हुए खदेरन बोला,

“बस-बस …. बंद कीजिए फाटक बाबू! मैं फुलमतिया जी के बारे में और ग़लत बातें नहीं सुन सकता!”

14 टिप्‍पणियां:

  1. बिल्कुल सही बात है! खदेरन जी!
    मज़ेदार!
    हा.हा.हा......

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  2. और प्रेम मिलेगा खदेरन को, आई मीन और पिटेगा।
    हा हा हा

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  3. फूलमती ने फूल फेंककर मारा तो ये हाल हुआ बेचारे खदेरन का... ईश्वर दोनों का प्रेम बनाए रखे और उसपर हमेशा फूलों की बारिश होती रहे!!

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  4. शायद फूलो के साथ फूलमतिया जी ने पूरा गमला दे मारा होगा |

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  5. हा..हा..हा...
    बीबी के हाथों मार खाना तो बड़े सौभाग्य की बात होती है । उसमें बीबी का प्यार छुपा होता है ।

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  6. प्रेम का मर्म फूल और कांटे दोनों में निहित है जो उस सहज से जीवन मे कितनी खूबसूरती से देखा जा सकता है. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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